Tuesday, December 5, 2023
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तीसरे सोमवारी पर जानें आखिर भगवान शिव को क्यों प्रिय है सावन का महीना

स्टोरी हाईलाइट्स
सावन का तीसरा सोमवार आज
तीसरा सोमवार भक्तों के लिए होता है खास
भगवान शिव को प्रिय है सावन का महीना

25 जुलाई से सावन (Sawan) शुरू हो चुका है।  घर से लेकर शिवालयों तक भक्तगण शिव की अराधना में लीन हो चुके हैं। चारों ओर हर-हर महादेव की आवाज गूंजने लगी है।  सावन के यह शुभ महीना भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्ति का श्रेष्ठ महीना होता है।  ऐसा कहा जाता है कि सावन में जो भी भक्तगण सच्चे मन से महादेव की अराधना करते हैं, उनके ऊपर भगवान शिव की कृपा बरसती है।

Sawan महीने का महत्व

हिंदू धर्म में Sawan के महीने का अलग ही महत्व है।  हिंदू धर्म ग्रंथ के अनुसार ऐसा माना जाता है कि सावन के महीने में राहु-केतु, काल सर्प दोष जैसे दोषों को कम करने के लिए ये व्रत किया जाता है।  सावन में यज्ञ, अनुष्ठान और पूजा-पाठ करने से जीवन से नकारात्मक चीजें दूर होती हैं।  साथ ही ग्रह दोष भी समाप्त होते हैं।

भगवान शिव को प्यारा है सावन का महीना

सावन का महीना देवों के देव महादेव को सबसे अधिक प्रिय है।  इस से जुड़ी एक पौराणिक कथा है।  इस कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव से सनत कुमार ने पूछा कि हे शिव आपको सावन का महीना इतना प्रिय क्यों है।  इस प्रश्न को सुनकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए।  शिव ने सनत कुमार से कहा कि आप इस महीने के फल को श्रवण करना चाहते हैं।  श्रवण का हिन्दी में मतलब होता है सुनना।  इसी आधार पर इस महीने का नाम श्रावण पड़ा।  इसके अलावा और भी कई पौराणिक कथाएं हैं जैसे पूर्णिमा तिथि में श्रवण नक्षत्र का संयोग बनता है।   इसलिए भी इसे श्रावण मास कहा जाता है।

चारों आश्रमों के लोग अपने तरीके से कर सकते हैं पूजा

सावन में चारों आश्रमों के लोग अपने तरीके से भगवान शिव की पूजा अर्चना  कर सकते हैं।  चाहे ब्रह्मचर्य आश्रम हो या गृहस्थ आश्रम, चाहे वानप्रस्थ आश्रम या फिर सन्यास आश्रम।  सभी अपने अपने तरीके से पूरे विधि-विधान के साथ महादेव की पूजा-अर्चना और अनुष्ठान कर सकते हैं।

ऐसे शुरू हुई थी बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा

कहा जाता है कि भगवान शिव समुद्र मंथन के समय सारा विष पी लिया था। इसी विष के प्रभाव से उनके पूरे शरीर में ताप अधिक होने लगा।  इससे उनका मस्तक भी गर्म हो गया।  इसी वजह से पूरा वातावरण जलने लगा जिसके बाद सभी देवी-देवताओं ने महादेव के ऊपर बेलपत्र चढ़ाया।  उसके बाद उन्होंने महादेव को जल से स्नान करवाया।  इसके बाद भगवान शिव के शरीर में उत्पन्न गर्मी शांत होने लगी।  तभी से भगवान पर बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा चलने लगी।

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