Saturday, December 2, 2023
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टीआरएस द्वारा एनटीआर के लिए भारत रत्न की मांग करने के ये है असली वजह, जानिए

नई दिल्लीः संयुक्त आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सुप्रसिद्ध अभिनेता एनटी रामाराव (NTR) उनकी 100 जंयती की पूर्व संध्या पर राज्य की सत्ताधारी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की मांग की है.

NTR की विरासत पर दावा

हालांकि NTR को भारत रत्न देने की मांग तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) द्वारा हमेशा से उठाई जाती रही है. एनटीआर जिसके संस्थापक थे. लेकिन, चंद्रबाबू नायडू द्वारा टीडीपी की बागडोर संभालने के बाद से ऐसा न करने कर उन्हे लगातार आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. 90 के दशक के आखिर में जब वाजपेयी सरकार को इनके समर्थन की जरूरत थी. तब नायडू ने इसका फायदा उठाते हुए कि अपने ससुर एनटीआर के खिलाफ ही विद्रोह कर दिया था. कहा जाता है कि उन्होंने ऐसा अपनी दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती के बहकावे में आ कर किया था. जिससे उन्होंने अपनी लाइफ में काफी देर बाद शादी की थी.

वाईएसआर कांग्रेस (युवाजना श्रामिका रैतु कांग्रेस पार्टी) और यहां तक ​​​​कि आंध्र प्रदेश में भाजपा ने भी कोशिश की है की टीडीपी के इस आपसी कलह में एनटीआर की विरासत को अपने लिए भुनाया जा सके. बता दें कि लक्ष्मी पार्वती अब वाईएसआर कांग्रेस में हैं, जबकि एनटीआर की बेटी डी पुरंदेश्वरी,  जो मनमोहन सिंह के शासन में मंत्री रह चुकी है और अब भाजपा में है. एक तरह से इन पार्टियों को एनटीआर की विरासत पर दावा दे रही हैं.

टीआरएस ने भी की NTR को भारत रत्न देने की मांग

दिलचस्प बात यह है कि अब NTR के लिए भारत रत्न की मांग करके टीआरएस भी इसमें शामिल हो गई है. हालांकि एनटीआर का तेलंगाना क्षेत्र से संबंध नहीं है. लेकिन टीआरएस अब एनटीआर की समृद्ध विरासत का एक और दावेदार बन गया है. एनटीआर तेलुगु गौरव के प्रतीक और एकजुट तेलुगु शिष्टाचार के नायक थे. इस प्रकार, एनटीआर की विरासत तेलंगाना गौरव के विपरित है जो टीआरएस जैसी क्षेत्रीय पार्टी का समर्थन करती है. लेकिन राजनीति में डिवाइअ एंड रूल का उद्देश्य अंतर्निहित है.

केसीआर व्यकितगत रूप से करते थे NTR की प्रशंसा

टीआरएस सुप्रीमो और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव,  जो अपनी पार्टी बनाने से पहले टीडीपी में पले-बढ़े, उनका न केवल NTR के साथ घनिष्ठ संबंध था, बल्कि वो इस दिवंगत नेता की व्यक्तिगत प्रशंसा भी करते रहते थे. राज्य के बंटवारे के बाद कई बार खुद केसीआर ने यह बात कही. उन्होंने एनटीआर के नाम पर अपने बेटे का नाम केटी रामाराव रखा.

NTR के लिए भारत रत्न की मांग के पीछे ये हैं कारण

बंटवारें के बाद टीडीपी, जिसे तेलंगाना महत्वपूर्ण समर्थन प्राप्त था, जो धीरे-धीरे खत्म हो गई है. 2014 के चुनावों में, टीडीपी ने विभाजन की राजनीति की बदौलत 15 सीटें जीती थीं. हालांकि, 2018 में टीडीपी उम्मीदवार के रूप में सिर्फ दो विधायको को जीत मिली. जो बाद में टीआरएस में शामिल हो गए. कई ऐसे नेता जो पहले टीडीपी का हिस्सा थे,  उन्होंने ने भी बाद में केसीआर के नेतृत्व वाली कैबिनेट में मंत्री के रूप में भी काम किया. उनमें वाई दयाकर राव,  टी श्रीनिवास यादव, तुम्माला नागेश्वर राव, कदियाम श्रीहरि, महेंद्र रेड्डी आदि शामिल हैं. इस तरह केसीआर ने अपने राजनीतिक पैंतरेबाज़ी से टीआरएस को तेलंगाना में टीडीपी समर्थन को काफी हद तक हथिया लिया. ऐसे में एनटीआर के लिए भारत रत्न की मांग करने से टीआरएस को टीडीपी से दूर चले गए समर्थन आधार को खुद से जोड़ने मदद मिलेगी.

पीछड़े वर्ग का वोट हासिल करने का प्रयास कर रही टीआरएस

एनटीआर के नेतृत्व में टीडीपी ने पिछड़े वर्गों को राजनीतिक रूप से सशक्त बनाकर एक महत्वपूर्ण प्रयोग किया. क्योंकि तब इसकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस बड़े पैमाने पर एससी, एसटी और अल्पसंख्यक मतदाताओं को एकजुट करने का काम कर रही थी. हालांकि अब टीडीपी को कमजोर होने के बाद भाजपा पिछड़े वर्ग के वोटरों को अपनी ओर खींचने में जुटी हुई है. तेलंगाना भाजपा प्रमुख बंदी संजय ओबीसी समुदाय से आने वाले एक प्रभावशाली नेता है. टीडीपी को पिछड़े वर्ग के लोगों को बड़ा समर्थन रहा है. वहीं टीआरएस पिछड़े वर्ग के वोट को हासिल करने का लगातार प्रयास कर रही है क्योंकि एनटीआर की लोकप्रियता टीडीपी की सीमाओं को भी पार कर सकती है.

कांग्रेस और भाजपा से नाराज है सिमांध्र वोटर

तेलंगाना में अब भी बड़ी संख्या में सीमांध्र वोटर है जो मूल रूप से तटीय आंध्र और रायलसीमा क्षेत्रों से आते थे. वो अब आंध्र प्रदेश के अवशिष्ट राज्य में आते है. ऐसे में सीमांध्र वोटरो का समर्थन काफी महत्वपूर्ण है, खासतौर पर हैदराबाद और उसके आसपास के विधानसभा क्षेत्रों के लिए. टीडीपी के वोटर मुख्य रूप से कांग्रेस विरोधी हैं क्योंकि एनटीआर ने दिल्ली दरबार की सबसे पुरानी पार्टी के सत्तावाद के खिलाफ लड़ाई में अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई थी.

सीमांध्र के वोटर राज्य को विशेष दर्जे से इनकार और विभाजन अधिनियम में किए गए वादों को पूरा नहीं करने से भाजपा से भी नाराज हैं. ऐसे में टीआरएस का मानना ​​​​है कि एनटीआर के नाम का जाप करने से उसे टीडीपी वोटरो को अपनी रैली में खीचने में मदद मिलेगी. जो उपर्युक्त कारणो के चलते कांग्रेस और भाजपा की ओर नहीं झुक सकते.

टीआरएस की सत्ता को लेकर आशंकित थे सीमांध्र वोटर

हैदराबाद और तेलंगाना में अन्य जगहों पर बसे आंध्र और रायलसीमा क्षेत्रों के वोटरो ने अलग राज्य के लिए संघर्ष के दौरान टीआरएस का कड़ा विरोध किया. लेकिन यह दुश्मनी जल्द ही गायब हो गई जब टीआरएस ने विधानसभा चुनावों और ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनावों में चुनावी जीत दर्ज की, यहां बड़ी संख्या में सीमांध्र वोटर रहते हैं. हालांकि सीमांध्र वोटर टीआरएस के शासन को लेकर आशंकित थे. लेकिन, तेलंगाना राज्य ने ऐसी कोई दुश्मनी नहीं देखी. यही कारण है कि सीमांध्र के मतदाताओं ने बड़ी संख्या में टीआरएस के प्रति राजनीतिक झुकाव दिखाई. एनटीआर को भारत रत्न की मांग कर टीआरएस 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले इन मतदाताओं के साथ अपने रिश्ते को और मजबूत करना चाहती है.

एनटीआर का तेलगु गौरव सबसे बड़ा हथियार

एनटीआर क्षेत्रीय गौरव और केंद्रीकृत सत्तावादी संघ सरकार के प्रति विरोध का प्रतीक माना जाता है. केसीआर अब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ राजनीतिक अभियान शुरू कर रहे हैं. ऐसे में टीआरएस क्षेत्रीय आकांक्षाओं और संवैधानिक संघवाद को बरकरार रखने के लिए एनटीआर विरासत के साथ एक सामान्य कारण ढूंढ रही है. एक तरफ जब भाजपा हिंदी प्रभुत्व थोपने की कोशिश कर रही है, वो वही  एनटीआर का तेलुगु गौरव बीजेपी की भगवा ब्रिगेड पर प्रहार करने का एक शक्तिशाली हथियार होगा. धार्मिक होने और बेदाग धार्मिक प्रतीकवाद के बावजूद एनटीआर राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में वास्तव में एक धर्मनिरपेक्ष नेता थे.

राज्य में कल्याणकारी योजनाओं के अग्रदूत थे एनटीआर

ऐसे समय में जब केसीआर भाजपा की धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति के खिलाफ एक राष्ट्रीय जंग छेड़ना चाहते हैं, धर्म और राजनीति के बीच एनटीआर का बारीक अंतर अनुसरण करने योग्य है. एनटीआर जिन्होंने 2 रुपये प्रति किलो चावल सब्सिडी खाद्य योजना शुरू की, वह संयुक्त आंध्र प्रदेश में कल्याणकारी राजनीति की ओर पहला कदम था. केसीआर शासन ने योजनाओं की एक श्रृंखला शुरू करके कल्याणवाद की इस राजनीति को अपनाया है. एनटीआर की विरासत के साथ पहचान बनाने से टीआरएस ब्रांड ऑफ वेलफेयर पॉलिटिक्स को और बढ़ावा मिलेगा.

टीआरएस के पास पाने के लिए सबकुछ और खोने के लिए कुछ भी नहीं

इस तरह से  एनटीआर के लिए भारत रत्न की मांग करके टीआरएस के पास हासिल करने के लिए सब कुछ है और खोने के लिए कुछ भी नहीं है. पिंक पार्टी भी धरती के इस सपूत के लिए समान सम्मान की मांग कर रही है. पीवी नरसिम्हा राव का कांग्रेस पार्टी के प्रथम परिवार से मनमुटाव के चलते उन्हें टीआरएस समेत कांग्रेस प्रतिद्वंदियों का चहेता बना देता है.

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