Tuesday, December 5, 2023
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केवल अंग्रेज ही नहीं भारत पर 10 अन्य विदेशी आक्रमणकारियों ने भी किया था राज

भारत पर अंग्रेजों ने 200 सालों तक राज किया।  जिसकी शुरुआत सन् 1602 में ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन के साथ हुई।  व्यापार से लेकर भारत पर अधिपत्य जमाने तक की कहानी तकरीबन सभी भारतीयों को कमोबेश मालूम है या होगी।  लेकिन भारत को सिर्फ अंग्रेजों का शासन ही बर्दाश्त नहीं करना पड़ा था, बल्कि अंग्रेजों के अलावे 10 और विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत के अलग-अलग हिस्सों पर राज किया था।

हालांकि उस वक्त का भारत अलग अलग रियासतों में बंटा था इसलिए इतिहास के पन्नों में ये जरूर लिखा पाया जाता है कि संपूर्ण भारत पर कोई भी विदेशी पूरी तरह से शासन नहीं कर पाया था।  अंग्रेजों से पहले मुगलशासकों में सबसे अधिक वक्त तक भारत पर राज किया था।  इस लेख के जरिये हम आपको सिलसिलेवार ये बताने की कोशिश करने जा रहे हैं कि भारत पर सभी 11 विदेशी आक्रमणकारियों ने कब और किसको पराजित कर भारत पर अपना आधिपत्य जमाया था।

पहलाः यूनानियों का शासन  

भारत पर सबसे पहले ग्रीक राजा बैक्ट्रिया ने आक्रमण किया था।  बौद्धकाल के वक्त अफगानिस्तान भारत का ही अंग था।  यूनानियों ने अफगानिस्तान के आर्याना पर आक्रमण कर उसे जीता और उसके कुछ भाग को अपने कब्जे में ले लिया।  यूनानी राजाओं में सिकंदर (356 ईसापूर्व) का नाम इतिहास में पन्नों पर महान सिकंदर के रूप लिखा गया है।  सिकंदर या अलेक्जेंडर जब विश्व विजय को निकला तो रास्ते में उसने भारत पर भी हमला किया।  अपने शुरुआती हमले में उसने अफगानिस्तान और उत्तर पश्चिमी भारत के कुछ इलाकों अपना आधिपत्य जमा लिया।

अपनी बड़ी सेना और पराक्रमी सेनापति के दम पर उसने भारत को पराजित करने का खूब प्रयास किया लेकिन चंद्रगुप्त मौर्य की वीरता के आगे उसे विश्व विजयी अभियान को बीच में ही छोड़कर वापस जाना पड़ा।  सिकंदर के बाद ईसा पूर्व 220-175 में डेमेट्रियस प्रथम ने भारत पर हमला किया।  जिसमें उसने पंजाब प्रांत को जीता।  इसी काल में यवन साम्राज्य के दूसरे कुल के युक्रेटीदस ने भी भारत पर हमला किया था।  वहीं डेमेट्रीयस कुल के मीनेंडर (ईपू 160-120) जिसे मिलिंद के नाम से जाना जाता था अपने पराक्रम के बल पर सिन्धु नदी तक पहुंच चुका था।  वो पाटलीपुत्र (पटना) पर भी अपना अधिपत्य जमाना चाहता था लेकिन वो विफल रहा।

दूसराः शकों का शासन (123 ईसापूर्व-200 ईस्वी)

भारत के आक्रमण के शुरुआती दिनों में शकों ने यवनों के छोटे राज्यों पर कब्जा जमाया और मीननगर जो कि सिन्ध नदी के तट पर स्थित था उसको अपनी राजधानी बनाया।  अपने पहले शक राज्य को स्थापित करने के बाद उन्होंने गुजरात को सौराष्ट्र को जीता।  बाद में उन्होंने महाराष्ट्र के एक बड़े हिस्से को सातवाहन राजाओं से छीना।  शकों को भारत में बुलाने वाले जैन आचार्य कालक थे जो उज्जैन के निवासी थे।

एक जैन जनश्रुति के मुताबिक राजा गर्दभिल्ल से क्षुब्ध होकर आचार्य कालक ने शकों को भारत पर आक्रमण करने के लिए उकसाया, जिन्होंने राजा गर्दभिल्ल को युद्ध में हराया।  जिसके बाद धीरे धीरे शकों ने अपने साम्राज्य को बढ़ाया और अवंतिका, सिन्ध, महाराष्ट्र, गंधार आदि पर लंबे समय तक शासन किया।  शष्टण के अभिलेखों में शक संवत का इस्तेमाल भी किया गया है।  इन अभिलेखों के मुताबिक शकों ने भारत में 130 ईस्वी से 388 ईस्वी तक भारत पर शासन किया।

तीसराः कुषाणों का शासन (60-240 ईस्वी)

कुषाणों ने हिन्दी-यूनानी राजाओं की कमजोरी का लाभ उठाकर काबुल और कंधार पर कब्जा कर लिया।  भारत में कुषाणों के पहले राजा का नाम कुजुल कडफाइसिस था जिसने भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा पर बसे पल्लहवों को परास्त कर भारत में अपने साम्राज्य विस्तार करना शुरू कर दिया।  बाद में कुषाण शासक कुजुल और उसे बेटे विम तक्षम ने अपने राज्य और भी विस्तार किया।  पंजाब के पश्चिमी हिस्से से लेकर शुंग शासन के पश्चिमी हिस्से तक को उन्होंने अपने अधिकार में ले लिया।

कुषाण वंश के सबसे शक्तिशाली राजाओं में कनिष्क प्रथम का नाम आता है।  उसने सन् 127 से 140-50 ईस्वी तक अपना आधिपत्य बनाए रखा।  उसके पराक्रम का असर इस बात से परखा जा सकता है कि अफगानिस्तान में आज भी लोग अपने बच्चों के नाम उसके नाम पर रखते हैं।  कनिष्क का राज कश्मीर, उत्तरी सिन्ध, पेशावर और सारनाथ तक फैला था।  वहीं उसके राज्य की उत्तरी सीमा चीन की सीमा को छूती थी।  आज के पाकिस्तान में जिस शहर का नाम पेशावर है उसकी स्थापना कनिष्क ने ही की थी और वहां एक स्तूप भी बनवाया था।

चौथाः हूणों का शासन

कालांतर में हूण मध्य एशिया की एक खानाबदोश जाति थी जो काफी बर्बर थी।  जहां तक भारत के इतिहास में हुणों के शासन की बात है इनके दो राजाओं के नाम प्रसिद्ध है।  तोरमाण और उसके बेटे मिहिरगुल इनके नाम है।  हूणों ने भारत पर आक्रमण कर सबसे पहले पंजाब और मालवा पर विजय हासिल किया जिसके बाद उन्होंने भारत को अपना स्थायी निवास बनाया।  अपनी प्रवृति के मुताबिक हुणों ने उत्तर-पश्चिमी भारत में खूब लूट खसोट मचाई।  जिसमें उन्होंने जैन-बुद्ध स्तूपों और मंदिरों की क्षति पहुंचाई।

पांचवांः अरब-ईरानी शासन (711-715 ई.)

अरबियों और ईरानियों ने 7वीं सदी के अंत में इस्लामिक शासन का विस्तार किया।  जिसके लिए मोहम्मद बिन कासिम का सिन्ध पर आक्रमण मुख्य रहा।  712 ईस्वी में मोहम्मद बिन कासिम ने महज 17 साल की उम्र में सिन्ध के अभियान को सफल बनाया।  कासिम ने सिन्ध के राजा दाहिरसेन की हत्या कर सिन्ध और पंजाब को अपने कब्जे में कर लिया।

7वीं सदी के बाद भारत में तुर्क और अरब के मुस्लिमों ने हमला करना शुरू किया और अरबी सेनापति याकूब एलेस ने 870 ईस्वी में अफगानिस्तान पर अपना अधिकार जमा लिया।  जिसके बाद से मुसलमानों ने धर्मांतरण अभियान चलाया और हजारों लाखों हिन्दू और बौद्धों का धर्मांतरण किया।  लेकिन साल 1019 में एक ऐसा वक्त आया कि अफगानिस्तान का इतिहास पूरी तरह से पलट गया।  जब महमूद गजनी से त्रिलोचनपाल की हार हुई तब काफिरिस्तान को छोड़कर सभी अफगानी मुसलमान बन गए।

छठाः गजनवी तुर्क शासन (977ईस्वी)

अरब आक्रमणकारियों के बाद तुर्कों ने भारत पर हमला किया।  इसकी शुरुआत 977 ईस्वी में हुई जब अलप्तगीन नाम के तुर्क के दामाद सुबुक्तगीन ने गजनी पर अपना साम्राज्य स्थापित किया।  उसे मरने से पहले अपनी राज्य की सीमाएं अफगानिस्तान, बल्ख खुरासान और पश्चिम-उत्तर भारत तक फैलाई। उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र महमूद गजनवी ने गद्दी संभाला और भारत के दूसरों हिस्सों पर हमला करना शुरू कर दिया।

महमूद गजनवी ने भारत पर कुल 17 बार आक्रमण किया।  इन आक्रमणों में उसने राजा जयपाल, भटिंडा के शासक आनंदपाल, पंजाब फतह, नगरकोट, अलवर, नंदशाह, कश्मीर, कन्नौज, बुंदेलखंड, किरात, लोहकोट, लोदोर्ग, चिकलोदर अन्हिलवाड़, सोमनाथ, सिन्ध और मुल्तान पर विजय हासिल की।  1025 ईस्वी में सोमनाथ मंदिर को तोड़कर लूटपाट की।  इसी दौरान उसने 50 हजार ब्राह्मणों और हिन्दुओं का कत्लेआम किया।

सातवांः मुहम्मद गोरी-तुर्क शासन  

केवल मोहम्मद बिन कासिम और महमूद गजनवी ही नहीं मुहम्मद गोरी ने भी भारत में जमकर कत्लेआम किया और लूटपाट की।  इतिहास के पन्नों में भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना का श्रेय मुहम्मद गोरी को ही जाता है।  मुहम्मद गोरी एक तुर्क शासक था जो एक छोटे से पहाड़ी प्रदेश गोर का शासक था जिसने भारत पर कई हमले किए।  1191 और 1192 में पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी के बीचे दो युद्ध हुए।

पहले युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी को बुरी तरह से पराजित किया।  लेकिन युद्ध में गोरी को बंधक बनाने के बाद उसे छोड़ दिया, फिर दूसरे युद्ध में अधिक तैयारी के साथ गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर बंधक बना लिया।  इससे पहले गोरी ने 1175 ईस्वी में मुल्तान, 1178 ईस्वी में गुजरात, 1179-86 ईस्वी पंजाब, 1179 ईस्वी पेशावर, 1185 ईस्वी में स्यालकोट पर जीत हासिल की थी।

आठवांः गुलाम वंश (1206-1290)

भारत में गुलाम वंश 1206 से 1290 ईस्वी तक दिल्ली पर शासन किया।  गुलाम वंश का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था, जिसने 1194 ईस्वी अजमेर पर हमला किया और उसे जीतकर जैन मंदिर और संस्कृत विश्वविद्यालय को गिराया और उसकी जगह कुव्वल-उल-इस्लाम और ढाई दिन का झोपड़ा बनवाया।  इसके साथ ही उसने ध्रुव स्तंभ के पास के नक्षत्रालयों को ध्वस्त कर कुतुबमीनार का नाम दिया।  उसके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने बुन्देलखंड का कालिंजर किला, बंगाल, बिहार के विक्रमशिला, नालंदा विश्वविद्यालय पर कब्जा किया।

नौवांः खिलजी वंश (1290-1320)

खिलजी वंश शासन की शुरुआत गुलाम वंश के बाद जलालुद्दीन खिलजी ने की थी।  गुलाम वंश के आखिरी बादशाह कैकुबाद के पतन के बाद जलालुद्दीन खिलजी गद्दी पर बैठा, उससे पहले वो गुलाम वंश की सेना का एक मामूली सैनिक था।  अपने शासन के दौरान उसने भी खूब लूटपाट की।  हालांकि उसके भतीजे जूना खां ने 1296 में उसकी हत्या कर दी और खुद अलाउद्दीन खिलजी की उपाधि धारण की और 20 साल तक सत्ता पर काबिज रहा।  अलाउद्दीन खिलजी ने कई हिन्दू राज्यों को तहस नहस कर उसे अपने राज्य में मिला लिया।

खिलजी वंश के बाद दिल्ली पर तुगलक वंश का शासन हुआ।  जिसने उत्तर और मध्यभारत के कुछ राज किया था।  तुगलक वंश में फिरोजशाह तुगलक, नसरत शाह तुगलक, गयासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली के मुख्य शासक रहे।  तुगलक वंश के बाद लोदी वंश का पदार्पण हुआ, इनमें सबसे महत्वपूर्ण बहलोल लोदी था।  बहलोल लोदी के पहले दिल्ली पर तुर्कों का राज था, लेकिन लोदी शासक अफगानी थे।  बहलोल लोदी के बाद सिकंदर लोदी और इब्राहीम लोदी ने दिल्ली पर शासन किया।  1526 ईस्वी में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी बाबर के हाथों मारा गया और यहीं लोदी वंश समाप्त हो गया।

10वांः मुगल और अफगान (1525-1556)

चंगेज खां मंगोलिया का एक वीर और साहसी सरदार था।  मंगोल पहल मंघोल कहे जाते थे बाद में वो मुगल कहे जाने लगे।  मुगल शासक तैमूरलंग 1369 ईस्वी में समरकंद का राजा बना और भारत में खून-खराबा और लूटपाट वाली नीति से शासन किया।  तैमूरलंग वास्तव में तुर्क था लेकिन वो खुद को चंगेज खां का वंशज होने का दावा किया करता था।  तैमूरलंग के बाद बाबर ने दिल्ली पर हमला किया साथ ही उसने उत्तर भारत के मंदिरों को अपना निशाना बनाया और जमकर लूटपाट की।

बाबर के बाद हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब और बहादुर शाह प्रथम और बहादुर शाह जफर ने लंबे वक्त तक दिल्ली में मुगल शासन चलाया।  दिल्ली का अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर था।  बाबर और उसके वशंजों के अलावा भारत के दक्षिणी क्षेत्र में बहमनी वंश (347-1538 ईस्वी) और निजाम वंश (1490-1636 ईस्वी) तक शासन किया और दक्षिण के हिन्दू साम्राज्य विजयनगरम से लड़ते रहे।

11वां और अंतिम ब्रिटिश शासन

          17वीं शताब्दी की शुरुआत में व्यापार करने के इरादे से कैप्टन हॉकिन्स भारत आया।  लेकिन उनकी मंशा व्यापार के बहाने भारत पर कब्जा जमाना था।  इसी के तहत उन्होंने धीरे धीरे अपना साम्राज्य फैलाया और भारत को गुलाम बनाया।  सबसे पहले अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने तात्कालिक बंबई, मद्रास और कलकत्ता पर कब्जा किया।

फ्रांसिसियों की ईस्ट इंडिया कंपनी चंद्रानगर, माहे और पांडिचेरी पर कब्जा जमाया।  अंग्रेजों को शुरू से ही भारत में कड़ा विरोध का सामना करना पड़ा, अपने छोटे छोटे रियासतों को बचाने के लिए मराठों, राजपूतों और सिखों ने उनके दांत खट्टे भी किये।  लेकिन उस वक्त तक भारत के कई रिसायतों में बंटे होने का लाभ अंग्रेजों ने खूब उठाया।                            

कंपनी को मैसूर, मराठों, बर्मा और सिखों के साथ कुल 11 लड़ाइयां लड़नी पड़ी, लेकिन हर लड़ाई में कंपनी को दूसरे देसी राजाओं का साथ मिलता गया और उन्होंने धीरे धीरे पूरे भारत पर कब्जा कर लिया।  अपने फूट डालो और राज करो की रणनीति का भी उन्हें पूरा लाभ मिला, इस नीति की वजह से उन्होंने रियासतों के राजाओं की आपस में लड़ाया और उनसे खुद भी मदद ली।

साल 1857 से सिपाही विद्रोह के बाद भारत की बागडोर कंपनी के हाथ से ब्रिटिशों के हाथ में आई। जिसके बाद से उन्होंने 1947 तक भारत पर शासन किया।  इस तरह कंपनी और अंग्रेजों ने मिलकर भारत पर कुल 200 सालों तक राज किया।  भारत जब 1947 में आजाद हुआ तो अंग्रेजों ने जाते जाते भारत को धर्म के नाम पर विभाजित कर दिया।

भारत और पाकिस्तान का बंटवारा और उस वक्त का भयावह मंजर इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है। यही वजह है कि आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी विभाजन का दंश और धर्म के नाम पर भारत में लोग बंटे हुए हैं।  जिसका फायदा आज भी धर्म गुरू और राजनीतिक लोग उठाते आ रहे हैं।

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