नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए राष्ट्रद्रोह कानून की धारा 124 ए पर रोक लगा दी. शीर्ष कोर्ट ने इस धारा के तहत दायर सभी लंबित मामलों पर भी रोक लगायी है. साथ ही उच्च न्यायलय ने इस कानून पर केंद्र सरकार को पुनर्विचार का निर्देश दिया है. अपने फैसले शीर्ष कोर्ट ने साफ कहा है कि इस धारा के तहत अब कोई नया केस दर्ज नहीं होगा और इसके तहत जेल में बंद लोग कोर्ट से जमानत मांग सकेंगे. शीर्ष कोर्ट ने केंद्र व राज्यों को भादंवि की धारा 124 ए के पुनरीक्षण की इजाजत देते हुए कहा कि जब यह काम पूरा न हो, कोई नया केस इस धारा में दर्ज नहीं किया जाए.
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बता दें कि राष्ट्रद्रोह कानून (Sedition law) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई हुई. केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखा. चीफ जस्टिस एन वी रमण की अध्यक्षता वाली बेंच पीठ से मेहता ने कहा कि एक संज्ञेय अपराध को दर्ज करने से रोकना सही नहीं होगा. 1962 में एक संविधान पीठ ने राष्ट्रद्रोह कानून की वैधता को कायम रखा था. इसके प्रावधान संज्ञेय अपराधों के दायरे में आते हैं.हां, ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करने की निगरानी की जिम्मेदारी पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी को दी जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट में केंद सरकार का तर्क
मेहता ने आगे कहा कि जहां तक देशद्रोह के विचाराधीन मामलों का सवाल है, हर केस की गंभीरता अलग होती है. किसी मामले का आतंकी कनेक्शन तो किसी का मनी लॉन्ड्रिंग कनेक्शन हो सकता है. अंतत: लंबित केस अदालतों के समक्ष विचाराधीन होते हैं और हमें कोर्ट पर भरोसा करना चाहिए. इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से साफतौर पर कहा गया कि राष्ट्रद्रोह के प्रावधानों पर रोक का कोई भी आदेश पारित करना अनुचित होगा.
केंद्र स्पष्ट करे अपना रूखः सुप्रीम कोर्ट
बता दे कि मंगलवार को सु्प्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि वह देशद्रोह के लंबित मामलों को लेकर 24 घंटे में अपना मत स्पष्ट करे. कोर्ट ने पहले से दर्ज ऐसे मामलों में नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए औपनिवेशिक युग के इस कानून के तहत नए मामले दर्ज नहीं करने पर भी अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था.
आपको बता दें कि वर्ष 2014 से 2019 के बीच देश में इस विवादित कानून के तहत कुल 326 मामले दर्ज किए गए थे. इनमें से केवल छह लोगों को दोषी ठहराया गया. केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार कुल 326 मामलों में से सबसे ज्यादा 54 मामले असम में दर्ज किए गए थे. जबकि 2014 से 2019 के बीच एक भी मामले में दोष सिद्ध नहीं हुआ था.