नई दिल्लीः भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बुधवार को मौद्रिक नीति समिति की बैठक की. और रेपो दर में बढ़ोतरी की. दो महीने में RBI ने की रेपो रेट में ये दूसरी बढ़ोतरी है. देश की महंगाई दर को 8 फीसदी से कम रखने के लिए आरबीआई लगातार मंथन कर रहा है और इसी कड़ी में RBI ने बुधवार को यह फैसला लिया. लेकिन आरबीआई द्वारा रेपो रेट में बढ़ोतरी से आम आदमी के दैनिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा ये जानना हमारे लिए जरूरी है लेकिन उससे पहले ये जानना जरूरी है रेपो रेट है क्या?
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रेपो रेट
दरअसल रेपो रेट वह दर है जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को पैसा उधार देता है. यानी देश के अन्य बैंक आरबीआई से जो लोन लेते है. ऐसे में रेपो रेट बढ़ने से उन्हें अब आरबीआई को ब्याज पहले की तुलना में अब बढ़ी हुई दर पर चुकाना होगा. जो बुधवार को आरबीआई ने 50 बेसिस प्वाइंट बढ़ाकर 4.9 फीसदी कर दिया. इससे पहले आरबीआई ने रेपो रेट 4 फीसदी से बढ़ाकर 4.4 फीसदी कर दिया था.
लोन लेना होगा मंहगा
मतलब अब 4.9 प्रतिशत ब्याज की नई दर से वाणिज्यिक बैंकों RBI से लोन लेंगे. औऱ उसी दर के हिसाब से ये वाणिज्यिक बैंक आम आदमी को लोन देंगे. अगर साफ शब्दों में कहे तो जितना अधिक ब्याज दर पर ये बैंक आरबीआई से लोन लेंगे उतने ही अधिक ब्याज दर पर आम आदमी को बैंकों से लोन मिलेगा. जिससे साफ है कि आम आदमी के लिए बैंकों से लोन लेना मंहगा हुआ है. हांलाकि इससे एक फायदा भी कि बैंकों में जमा धनराशि पर लोगों को बढ़ीं हुई रेपो रेट के हिसाब से ही ब्याज दर मिलेगा.
क्यों बढ़ता है रेपो रेट
कोई भी देश का केंद्रीय बैंक अगर भारत की बात करें तो RBI , मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अपनी रेपो रेट में वृद्धि करता है. बढ़ी हुई रेपो रेट बैंकों के लिए आरबीआई से उधार लेने के लिए एक निगेटिव इंसेंटिव के रूप में कार्य करती है. अर्थव्यवस्था में कम मुद्रा आपूर्ति मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद करती है. इससे पैसा कम प्रचलन में होता है, समान मात्रा में सामान और सेवाओं के मुकाबले, कीमतों को ठंडा करता है. और लोग अधिक बचत करते हैं.
उच्च ब्याज दर का मतलब यह भी है कि अधिक निवेशक उच्च रिटर्न के कारण सरकारी बॉन्ड और ब्याज दर वाले उत्पाद पर निवेश करते हैं. और चूंकि अधिक लोग फिक्सड डिपॉजिट का विकल्प चुनते है क्योंकि इस दौरान इन्हें ज्यादा ब्याज दर मिलता है. इससे रुपया की वैल्यू बढ़ जाती है.