Tokyo Olympic में रेसलिंग में भारत का गोल्ड लाने का सपना उस वक्त टूट गया। जब Ravi Dahiya को ओलंपिक रेसलिंग में हार का सामना करना पड़ा। रवि दहिया ROC के पहलवान जावुर युगुऐव से हार गए। भले ही रवि दहिया को सिल्वर से संतुष्ट होना पड़ा हो। लेकिन न केवल उनके लिए बल्कि पूरे देश के लिए यह बड़ी उपलब्धि है। क्योंकि रवि दहिया ओलंपिक में रेसलिंग में व्यक्तिगत सिल्वर मेडल लाने वाले दूसरे खिलाड़ी बन गए हैं।
Ravi Dahiya का खेल करियर
हरियाणा के सोनीपत में के नहरी गांव में 1997 में रवि दहिया का जन्म हुआ। उनके पिता एक किसान थे, लेकिन उनके पिता के पास जमीन नहीं थी। उनके पिता बंटाई की जमीन पर खेती किया करते थे। उनके पिता का सपना था कि रवि दहिया एक पहलवान बने, इसलिए 10 साल की उम्र से ही उन्होंने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी थी। उनके कोच सतपाल सिंह थे, जिन्होंने 1982 में एशियन गेम्स में गोल्ड जीता था।
घर में थी आर्थिक तंगी
रवि दहिया के घर में आर्थिक तंगी थी। लेकिन उनके पिता राकेश ने इस तंगी को रवि दहिया के करियर के आड़े नहीं आने दिया। पहलवान दहिया के पिता 40 किलोमीटर की दूरी तय कर उनके पास दूध और फल पहुंचाते थे। इधर उनके पिता अपने बेटे के लिए दिन रात मेहनत करते थे। एक वक्त ऐसा था कि पहलवान दहिया के पिता काम के बोझ की वजह से 2019 के वर्ल्ड चैंपियनशिप का मैच भी नहीं देख पाए। इस प्रतियोगिता में रवि दहिया ने कांस्य पदक जीता था।
चोट और जूनून के बीच खूब चली जंग
पहलवान रवि दहिया ने सबसे पहले 2015 में जूनियर वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में 55 किलो कैटेगरी में सिल्वर मेडल जीता था। इस प्रतियोगिता के सेमीफाइनल में उन्हें चोट लग गई थी। लेकिन चोटिल होने के बाद भी उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की। फिर साल 2017 में सीनियर नेशनल्स में फिर उन्हें चोट आई। इस चोट से उबरने में उन्हें करीब एक साल लग गए। फिर उन्होंने शानदार वापसी करते हुए बुखारेस्ट में वर्ल्ड अंडर रेसलिंग प्रतियोगिता में 57 किलोवर्ग में रजत पदक जीता।