9 सितंबर 1974 का वो दिन जब एक योद्धा ने जन्म लिया था। वह योद्धा जिसने देश की खातिर हंसते-हंसते अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। जिसने सर्दी गर्मी कुछ नहीं देखा बस अपने कर्तव्य को निभाते चला गया। आज ऐसे ही एक योद्धा कारगिल वार के हीरो शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा (Vikram Batra) की जयंती है। उनका जन्म 9 सितंबर 1974 को पालमपुर में हुआ था। कैप्टन विक्रम बत्रा बचपन से ही निडर और जिंदादिल रहे हैं। हाल ही में उनकी जिंदगी पर बनी फिल्म शेरशाह (Shershaah) ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं।
Vikram Batra ने लिखी वीरता की इबारत
कैप्टन विक्रम बत्रा को बचपन से ही फौज में भर्ती होने का जुनून था। बचपन में जब उनके घर पर टीवी नहीं हुआ करती थी तो वह अपने जुड़वां भाई विशाल के साथ पड़ोसी के घर टीवी देखने के लिए जाया करते थे। उस समय परमवीर चक्र नामक सीरियल दूरदर्शन पर खूब देखा जाता था। उसी सीरियल को देखकर विक्रम बत्रा ने अपना रूख आर्मी की ओर कर लिया। विक्रम पढ़ाई में भी अव्वल थे। उनका मर्चेंट नेवी में भी सेलेक्शन हो गया था जहां उनकी सैलरी भी ज्यादा थी। लेकिन सपना तो सपना होता है, विक्रम ने तय कर लिया था कि उन्हें सेना में ही जाना है।
‘ये दिल मांगे मोर’ और फतेह कर ली जंग
1995 में विक्रम बत्रा ने IMA की परीक्षा पास कर ली और सेना में भर्ती हो गए। 6 दिसंबर 1997 को जम्मू के सोपोर में 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। कारगिल (Kargil War) लड़ाई में उनके कमांडिग ऑफिसर कर्नल योगेश जोशी ने उन्हें 5140 चौकी फतह करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। इस चोटी पर तिरंगा लहराने के बाद विक्रम ने अपने अधिकारियों को संदेश भेजा ‘ये दिल माँगे मोर। उनका ये संदेश हर हिंदुस्तानी के बीच मशहूर हो गया था। बत्रा के अदम्य साहस को देखते हुए 15 अगस्त 1999 को उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया। यह अवार्ड बलिदानी विक्रम बत्रा के पिता जीएल बत्रा ने राष्ट्रपति से प्राप्त किया।
विक्रम बत्रा और उनका प्यार डिंपल (Dimple) की कहानियां भी खूब चर्चा में हैं। जब शेहरशाह फिल्म की शूटिंग के लिए स्क्रिप्ट लिखी जा रही थी, तब फिल्म के राइटर संदीप श्रीवास्तव ने फिल्म के लिए डिंपल चीमा से बात की तो उन्होंने बताया था कि, वो कैप्टन विक्रम को 4 साल से जानती थीं. लेकिन 4 सालों में उन दोनों ने सिर्फ 40 दिन ही साथ बिताए थे।