Tuesday, December 5, 2023
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महामारी का इतिहासः हर 100 साल में हाहाकार मचाती है Pandemic

आज की तारीख में पूरा विश्व कोरोना Pandemic की चपेट में है।  आंकड़ों की मानें तो विश्व में इस बीमारी ने अबतक 35 लाख लोगों को मौत की नींद सुला चुका है।  मौत के इस मंजर का सिलसिला बदस्तूर जारी है ना जाने कितने लोगों को लील लेने के बाद कोरोना महामारी से पूरे विश्व को निजात मिलेगी।

सिर्फ अमेरिका और भारत के ही आंकड़ों पर नजर डालें तो 10 लाख से अधिक केसेज एक्टिव है और ये संख्या रोजाना बढ़ती ही चली जा रही है।  उम्मीद से की वैक्सीनेशन की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद इस महामारी से लोगों को छुटकारा मिल जाएगा।

विश्व के सबसे अधिक प्रभावित देशों की सूची

कोरोना महामारी से जूझ रहे देशों में पहला स्थान अमेरिका का है वहीं भारत दूसरे स्थान पर काबिज है।  नीचे दी सूची से आप इन आंकड़ों पर नजर डाल सकते हैं।

देश का नाम

कुल केस

एक्टिव केस

ठीक होने वालों की संख्या

मरने वालों की संख्या

अमेरिका

33,044,068

6,812,645

25,475,789

589,207

भारत

18,762,976

3,170,814

14,556,209

208,330

ब्राजील

14,592,886

1,099,201

12,879,051

401,417

फ्रांस

5,592,390

995,421

4,405,319

104,224

रूस

4,787,273

268,145

4,394,639

109,367

तुर्की

4,667,281

506,899

4,121,671

38,711

ब्रिटेन

4,406,946

81,840

4,197,672

127,434

इटली

3,971,114

452,812

3,398,763

119,539

स्पेन

3,488,469

227,837

3,182,894

77,738

इन नौ देशों में कोरोना की वजह से सबसे भयावह स्थिति है, हालांकि अमेरिका ने अपने देश को मास्क फ्री घोषित कर दिया है।  जिसके पीछे उसने ये हवाला दिया है कि उसके देश के 80 फासदी लोग वैक्सिनेट हो चुके हैं।  जहां तक भारत की बात है कोरोना का कहर कम तो हुआ है लेकिन यहां इस बीमारी से निजात पाने में तकरीबन एक साल जरूर लग जाएंगे।

हर 100 साल में तबाही मचाती है Pandemic

ऐसा नहीं है कि विश्व ने पहली बार Pandemic का सामना किया है।  इससे पहले भी कई महामारियों ने इंसानी जिंदगी को तबाह किया है।  इतिहास के पन्नों को पलटें तो प्लेग नाम की बीमारी ने इंसानी जिंदगी को सबसे अधिक तबाह किया है।  साल 1720 में फ्रांस में प्लेग की बीमारी ने महामारी का रूप ले लिया था उस वक्त जब आबादी कम थी प्लेग ने 1,00,000 लोगों की जान ली थी।

एक आश्चर्य ये भी है कि तकरीबन हर 100 साल में कोई न कोई बीमारी Pandemic के रूप में सामने आती है और पूरे विश्व में लाखों लोग काल के गाल में समा जाते हैं।  1720 के बाद  1817 से 1824 की हैजा की बीमारी ने महामारी का रूप लिया।  फिर 1918 में स्पेनिश फ्लू (जिसे Mother of All Pandemic कहा जाता है ) और 2019 से 2021 तक (अगर कोरोना पर पूरे विश्व ने कंट्रोल कर लिया) कोरोना ने तबाही मचाई।

1720 से भी पहले है Pandemic का इतिहास

मानव जाति की उत्पति के बाद शिकार युग के वक्त से ही संचारी रोग मौजूद थे, लेकिन 10,000 साल पहले कृषि जीवन में बदलाव ने कुछ ऐसे समुदायों का निर्माण किया जिनके रहन-सहन ने महामारियों को न्योता दिया।  उसी काल से मलेरिया, तपेदिक, कुष्ठ रोग, इन्फ्लूएंजा और चेचक जैसे रोग समय दर समय उजागर हुए।

एक तरफ मानव जीवन सभ्य होता गया वहीं दूसरी ओर रहन सहन के बदलाव की वजह से महामारियों ने भी समय समय पर अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराई और कई बार बड़ी आबादी को खत्म किया।   इस लेख में हम आपको ईसापूर्व से लेकर अबतक की उन बीमारियों के बारे में बताएंगे जिन्होंने महामारी का रूप लेकर व्यापक रूप से मानव जीवन को प्रभावित किया।

430 ईसा पूर्व: एथेंस

महामारियों के इतिहास की सबसे पहली तारीख 430 ईसापूर्व एथेंस में दर्ज की गई।  उस वक्त पेलोपोनेसियन युद्ध चल रहा था।  इस महामारी ने ना केवल एथेंस बल्कि लीबिया, इथियोपिया और मिस्र को भी तबाह किया।  इतिहास गवाह है कि इस महामारी में एथेंस की दो-तिहाई आबादी की मौत हो गई थी।  इतिहासकारों ने उस वक्त टाइफाइड बुखार होने का संदेह जताया था।  इस बीमारी के लक्षणों में बुखार, प्यास, जीभ और गले का खूनी लाल हो जाना, लाल त्वचा और त्वचा पर घाव थे।

165 ई.: एंटोनिन प्लेग

165 में फैले एंटोनिन प्लेग संभवतः चेचक का प्रारंभिक रूप था जिसके लक्षण हूणों में पहले दिखे।   इस बीमारी से हूणों ने जर्मनों को संक्रमित कर दिया, उसके बाद जर्मनों से ये बीमारी रोमन्स में फैली और युद्ध कर लौटे रोमन्स सैनिकों ने अपने पूरे साम्राज्य में इस बीमारी को फैला दिया।

एंटोनिन प्लेग के लक्षणों में बुखार, गले में खराश, दस्त और अगर रोगी लंबे समय तक जीवित रहता तो शरीर में मवाद से भरे घाव होने शामिल थे।   एटोनिन प्लेग लगभग 180 ईस्वी जारी रहा, जिसमें सम्राट मार्कर्स ऑरेलियंस को इसके पीड़ितों में से एक के रूप में दावा किया गया था।

250ई.: साइप्रियन प्लेग

250 ईस्वी में फैली साइप्रियन प्लेग इथियोपिया से शुरू होकर उत्तरी अफ्रीका से होते हुए रोम और मिस्र को तबाह किया।  इसने अगले तीन सदियों यानि 444 ईस्वी तक ब्रिटेन को भी अपनी चपेट में ले लिया।  साइप्रियन प्लेग से दस्त, उल्टी, गले का अल्सर, बुखार और पैरों गैंग्रीन जैसी बीमारियां होती थी।  इसने कार्थेज के ईसाई बिशप को भी अपनी चपेट में ले लिया था।

541 ई.: जस्टिनियन प्लेग  

जस्टिनियन प्लेग पहले मिस्र में प्रकट हुआ फिर फिलिस्तीन और बीजान्टिन साम्राज्य में फैलते हुए पूरे भूमध्य सागर के इलाकों में फैल गया।  जस्टिनियन प्लेग ने पूरे साम्राज्य की दिशा ही बदल दी।  इसने सम्राट जस्टिनियन की योजनाओं को विफल कर दिया।  इसे एक सर्वनाशकारी माहौल बनाने का श्रेय भी दिया जाता है जिसने ईसाई धर्म के तेजी से प्रसार को प्रेरित किया।

जस्टिनियन प्लेग ने अगली दो शताब्दियों में लगभग 50 मिलियन लोगों को काल का ग्रास बना दिया।  साथ ही इसे बुबोनिक प्लेग की पहली उपस्थिति माना जाता है। इस बीमारी में लसिका ग्रंथि बढ़ जाता है और यह चूहों और पिस्सुओं द्वारा संक्रमण की दर में तेजी लाता था।

11वीं शताब्दी का कुष्ठ रोग

हालांकि कुष्ठ रोग सदियों से चला आ रहा था, लेकिन 11वीं शताब्दी में यह यूरोप में एक महामारी के रूप में विकसित हुआ।  यह एक धीमी गति से विकसित होने वाली जीवाणु जनित बीमारी है जो घावों और शारीरिक विकृतियों का कारण बनती है।  पहले के जमाने में कुष्ठ रोगी वाले परिवारों को भगवान की ओर से सजा देना माना जाता था।  हालांकि यह अभी भी एक हर साल हजारों लोगों को पीड़ित करता है और अगर इसके रोगियों को सही इलाज ना मिले तो यह घातक हो सकता है।

1350: द ब्लैक डेथ

1347 ईस्वी में सिसिली से प्रवेश करते हुए बुबोनिक प्लेग जिसे द ब्लैक डेथ के नाम से जाना जाता था मेसिना के बंदरगाह पहुंचा फिर यह पूरे यूरोप में तेजी से फैल गया।  यह रोग उस वक्त दुनिया की एक तिहाई आबादी की मौत के लिए जिम्मेदार रहा।  बुबोनिक प्लेग का यह दूसरा बड़ा प्रकोप संभवतः एशिया में शुरू हुआ और पश्चिमी देशों में चला गया।

इस बीमारी की वजह से इंगलैंड और फ्रांस बर्बाद हुए कि उन्होंने अपने बीच चल रहे युद्ध को विराम देने का आह्वान किया।  बुबोनिक प्लेग ने आर्थिक और जनसांख्यिकी परिस्थितियों को बदल दिया और ब्रिटिश सामंती व्यवस्था ध्वस्त हो गई।

1492: कोलंबियाई एक्सचेंज

कैरेबिया स्पेनिशों के आगमन ने वहां के लोगों में चेचक, खसरा और बुबोनिक प्लेग जैसी बीमारियां फैलाई।  इन बीमारियों ने वहां के लोगों को तबाह कर दिया और पूरे उत्तर और दक्षिण महाद्वीपों में 90 फीसदी लोगों की मृत्यु हो गई।

1665: लंदन का विनाशकारी प्लेग

बुबोनिक प्लेग के एक और विनाशकारी रूप ने लंदन की 20 फीसदी आबादी खत्म हो गई।   इस विनाशकारी प्लेग की वजह से जैसे-जैसे मृत्यु की संख्या बढ़ती गई और सामूहिक कब्रें सामने आईं, सैकड़ों हजारों बिल्लियों और कुत्तों को मार डाला गया।  क्योंकि संभावना ये जताई गई थी कि उन्हीं में इंसानों में यह बीमारी संक्रमण कर रही है।   इस बीमारी का सबसे बुरा प्रकोप 1666 ईस्वी कम हो गया।

1817:  हैजा Pandemic का पहला प्रकोप

साल 1817 में हैजा महामारी का पहला प्रकोप सामने आया जिसके बाद अगले 150 सालों में विश्व के विभिन्न भागों में इंसानों की मौत की वजह बनी।  हैजा ने पहली बार रूस में महामारी का रूप लिया और इसकी वजह से वहां 10 लाख लोग मारे गए थे।  यह बीमारी भोजन, मल और पानी से लोगों को संक्रमित करता था।

इसके जीवाणु ब्रिटिश सैनिकों के भारत पहुंची और यहां भी लाखों लोग मारे गए।  ब्रिटिशों ने हैजा को स्पेन, अफ्रीका, इंडोनेशिया, चीन, जापान, इटली, जर्मनी और अमेरिका तक फैला दिया।  अमेरिका में इसने डेढ़ लाख लोगों की जान ली।  प्लेग का पहला टीका 1885 ईस्वी में बना लेकिन मौतों का सिलसिला धीरे धीरे कम हुआ।

1885:  तीसरी प्लेग महामारी

प्लेग की तीसरी लहर चीन से शुरू होकर भारत और हांगकांग तक जाते हुए 15 मिलियन लोगों को पीड़ित किया।  शुरू में यूनान में एक खनन को दौरान ये पिस्सू द्वारा फैला।  इस बीमारी ने सबसे अधिक भारतीयों को अपनी चपेट में लिया।

इसे पार्थे और ताइपिंग विद्रोह का एक कारक माना जाता है।  कहते हैं इस महामारी का इस्तेमाल दमनकारी नीतियों को साधने के लिए एक बहाने के रूप में किया गया, जिसकी वजह से अंग्रेजों का विद्रोह किया गया।  इस महामारी  1960 तक सक्रिय रहा, बाद में इसके पीड़ितों संख्या में गिरावट देखने को मिली।

1875: फिजी की खसरा Pandemic

1875 में फिजी की खसरा महामारी ने भी मानव जीवन को काफी नुकसान पहुंचाया।  इतिहाकारों के मुताबिक फ़िजी को ब्रिटिश साम्राज्य को सौंपे जाने के बाद ब्रिटिशों के एक शाही दल ने महारानी विक्टोरिया को उपहार के रूप में ऑस्ट्रेलिया का दौरा कराया।

लेकिन खसरे के प्रकोप की वजह से शाही दल को लौटना पड़ा।  लेकिन आदिवासी प्रमुखों और पुलिस द्वारा उनमें खसरा बीमारी फैल गई।  इस बीमारी ने फिजी के गांव के गांव को मौत का मंजर दिखाया।  इस बीमारी की वजह से फिजी की उस वक्त की एक तिहाई यानि तकरीबन 40 हजार आबादी खत्म हो गई।

1889: रूसी फ्लू

फ्लू बीमारी की महामारी की शुरुआत साइबेरिया और कजाकिस्तान में हुई।   फिर ये धीरे धीरे मास्को, फिनलैंड और पोलैंड में फैल गया।  इतना ही नहीं 1889 से 1890 तक ये पूरे यूरोप में फैल गया।  साथ ही इसने उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका को भी अपनी चपेट ले लिया।  1890 के अंत तक इसकी वजह से 3,60000 लोगों की मौत हो गई।

1918:  स्पेनिश फ्लू (Mother of All Pandemic)

ईसा पूर्व से लेकर अबतक की सबसे विनाशकारी महामारी स्पेनिश फ्लू रही।  एवियन जनित स्पेनिश फ्लू की वजह से दुनिया भर में 50 मिलियन (5 करोड़) लोगों की मौत हुई।  1918 में यह बीमारी पहली बार यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका और एशिया के कुछ हिस्सों में तेजी से फैला फिर यह पूरी दुनिया में फैल गया।

उस समय इस किलर फ्लू के इलाज के लिए कोई प्रभावी दवा या टीका नहीं था।  चूंकि इस बीमारी की शुरुआत  मैड्रिड में हुई थी इसलिए इसे स्पेनिश फ्लू कहा जाने लगा।  1918 के अक्टूबर महीने में इस बीमारी ने इतनी तबाही मचाई कि अक्टूबर को अमेरिका के सबसे घातक महीने के रूप में जाना जाने लगा।

1957: एशियाई फ्लू Pandemic

एशियाई देश हांगकांग से शुरू होकर ये फ्लू पूरे चीन और फिर संयुक्त राज्य अमेरिका में फैल गया।   एशिया के बाद ये इंग्लैंड में भी व्यापक रूप से फैल गया, जहां महज छह महीने में 14 हजार लोग मारे गए।  फिर 1958 में एशियाई फ्लू की दूसरी लहर आई जिसने पूरे विश्व में तबाही मचाई और इसकी वजह से पूरे विश्व में 11 लाख लोगों की मौत हो गई।  अकेले अमेरिका में एशियाई फ्लू की वजह से 1,16,000 लोगों की मौत हई।

1981: एचआईवी/एड्स  (HIV/AIDS)

            एचआईवी/एड्स की पहली बार 1981 में पहचान की गई।  इस बीमारी की वजह से इंसान के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली यानि ईम्यून सिस्टम नष्ट हो जाती है।  जिसके बाद से वो धीरे धीरे कई रोगों की चपेट में आ जाता है और उसकी मौत हो जाती है।  एचआईवी वायरस से संक्रमित होने पर बुखार, सिरदर्द और बढ़े हुए लिम्फ नोड्स का सामना करना पड़ता है।  रक्त वाहक और जननांग द्रव के माध्यम से ये अत्यधिक संक्रामक हो जाते हैं और ये रोग टी-कोशिकाओं को नष्ट कर देता है।

हालांकि इस रोग की गति की गति को कम करने के लिए इलाज विकसित हुआ है, लेकिन इसे पूरी तरह से खत्म करने के लिए अभी तक कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है।  शायद यही वजह है कि इस बीमारी से अब तक 35 मिलियन लोगों की मौत हो चुकी है।  एड्स नाम की ये बीमारी पहली बार अमेरिकी समलैंगिक समुदायों में देखा गया था।  लेकिन माना ये भी जाता है कि 1920 की दशक में पश्चिम अफ्रीका के एक चिंपैंजी के वायरस से विकसित हुआ था। 1960 के दशक में ये हैती और फिर 1970 के दशक में ये न्यूयॉर्क और सैन फ्रांसिस्को तक फैली।

2003:  सांस की बीमारी सार्स

सार्स नाम की बीमारी कब अस्तित्व में आई इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है।  लेकिन कई महीनों के मामलों के बाद पहली बार साल 2003 में इसकी पहचान हुई।   इस बीमारी की वजह से श्वसन तंत्र गंभीर रूप से प्रभावित होती है।

हालांकि ये रोग विश्व स्तर पर उतना घातक नहीं रहा फिर भी चीन से शुरू होने के बाद विश्व के 26 देशों को इसने प्रभावित किया और 8 हजार से अधिक लोगों को इसने अपनी चपेट में लिया।  इनमें से कुल 774 लोगों की मौत हो गई।  माना यह जाता है कि ये बीमारी चमगादड़ से शुरू होकर बिल्लियों में से होती हुई इंसानों में फैल गई।  सार्स बीमारी होने से लोगों में सूखी खांसी, बुखार, सिरदर्द और शरीर में दर्द होता है।

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