Wednesday, November 29, 2023
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नाजीवाद, एडोल्फ हिटलर और एक नए जर्मनी का उदय…रोचक है इस तानाशाह की जीवंतकथा

जब जर्मनी के अतीत में देखा जाता है तो एडोल्फ हिटलर का नाम स्वयं सामने आ जाता है।  वजह ये रही कि एक नए जर्मनी के निर्माण में एडोल्फ हिटलर का योगदान भुलाया नहीं जा सकता है।  एडोल्फ हिटलर का महत्व जर्मनी के इतिहास में अमर है। जिस समय जर्मनी का रिपब्लिकन दल, मित्र राष्ट्रों को वर्साय की संधि के मुताबिक अपने ऋण को चुकाने में लगे हुए थे उसी वक्त जर्मनी की धरती पर हिटलर का उदय हो रहा था।

हिटलर इसी वर्साय की संधि का विरोधी था, इसके बारे में उसने एक बार कहा था कि “जर्मनी का पराजय का कारण उनकी नेताओं की कायरताहै, जर्मनी की सेना में अब भी इतनी शक्ति है कि वह अपने दुश्मनों को नीचा दिखा सके, लेकिन उनके नेता हिम्मत हार गए हैं।”  हिटलर शुरु से ही वर्साय की संधि के खिलाफ था और उसके हर शर्त को खत्म करना चाहता था।  इसी विचार के तहत हिटलर ने अपना एक नया दल बनाया और एक नए जर्मनी का निर्माण किया।

एडोल्फ हिटलर का प्रारंभिक जीवन

एडोल्फ हिटलर का जन्म 20 अप्रैल 1889 को ऑस्ट्रिया और बवेरिया की सीमा के पास इन (Inn) नदी के किनारे ब्रोनो गांव में एक मोची परिवार में हुआ था।  उसके पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी जिसकी वजह से उसकी शिक्षा सही तरीके से नहीं हो पाई।  उसके बचपन में ही उसके पिता की मृत्यु हो जाने के बाद अपने भरण पोषण के लिए उसने मजदूरी करना शुरू कर दिया।

1914 में हिटलर जर्मनी की सेना में भर्ती हो गया, हालांकि कठिनाइयों ने उसे साहसी और वीर बना दिया जिसकी झलक उसके अधिकारियों को दिखी।   युद्ध में उसके पराक्रम को देखते हुए जर्मन सरकार की ओर से उसे  ‘आयरन क्रॉस’ की उपाधि से नवाजा गया।   जर्मनी और मित्र राष्ट्रों के बीच चल रहे युद्ध को रोकने के लिए विराम संधि की पहल की गई, लेकिन हिटलर इस संधि के खिलाफ था।   जिसके बाद हिटलर ने नए जर्मनी के निर्माण का सपना देखा और नाजीदल की स्थापना की।

नाजीवाद के सिद्धांतों के जरिये जर्मनी पर अधिपत्य

साल 1919 में हिटलर ने नाजीदल की स्थापना की, चूंकि हिटलर में नेतृत्व के सारे गुण मौजूद थे इसलिए वो इस दल का मुखिया बना।  इतिहास के पन्नों में अबतक के उत्तम वक्ताओं में हिटलर का भी नाम अंकित है।   कहते हैं अपने शानदार और जोशिले भाषणों से जनता को जागृत कर देता था।  उसके भाषणों का ही नतीजा था कि जर्मन सेना के कुछ अधिकारी नाजीदल में शामिल हुए जिससे हिटलर को भी एक अलग शक्ति मिली।  नाजीदल के सिद्धांतों को नाजीवाद कहा गया जिसके जरिये हिटलर ने जर्मनी पर सत्ता स्थापित की थी।

नाजीवाद के सिद्धांत

(1)  वर्साय की संधि को समाप्त किया जाए

(2) जर्मनी भाषा बोलने वाले जर्मन जाति के लोग जिन प्रदेशों में रहते हैं उन सबको मिलाकर विशाल जर्मनी साम्राज्य की स्थापना की जाए।

(3) जर्मनी के उपनिवेश (किसी राज्य के बाहर की वो दूरस्थ बस्ती जहां उस राज्य की जनता निवास करती है) उसे वापस किया जाए

(4) वर्साय की संधि में जर्मनी की सैनिक शक्ति पर जो प्रतिबंध लगाए गए हैं, उनको समाप्त किया जाए

(5) यहूदियों के देश विरोधी होने के कारण उन्हें देश से निर्वासित किया जाए

(6) इस प्रकार के प्रतिबंध की व्यवस्था की जाए ताकि बाहरी लोग जर्मनी में निवास न कर सकें

(7) देशभक्ति विरोधी प्रचार-पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के प्रकाशन रद्द कर दिया जाए

(8) साम्यवाद का अंत करने को प्राथमिकता

नाजीदल के लिबास एवं उसके मायने

नाजीदल को शक्तिशाली बनाने के लिए सेना का संगठन किया गया।  इस सेना को दो दलों में बांटा गया, एक दल का भूरे रंग की कमीज पहनता था, जिसके एक बांह पर एक लाल पट्टी रहती थी जिसपर स्वास्तिक का चिन्ह अंकित रहता था।  यह दल प्रदर्शन, प्रचार एवं सभाओं की रक्षा करता था।  वहीं सेना का दूसरा भाग काली कमीज पहनता था। यह दल के नेताओं के अंगरक्षक होते थे इन्हें Black Shirts Army और Storm Troops भी कहा जाता था।  इसके साथ ही नाजीदल की ओर पीपुल्स ऑब्जरवर्स नाम का समाचार पत्र निकाला गया।  इसका उद्देश्य जनता में नाजीदल के सिद्धांतों को पहुंचना एवं दल के सदस्यों की संख्या में उचित रूप से बढ़ोतरी करना था।

हिटलर की नीति

हिटलर की नीतियों ने इतिहास में हिटलर को अमर बना दिया।  हिटलर अपनी पार्टी का उत्थान और अन्य पार्टियों का सर्वनाश करना चाहता था। साम्यवादियों के महत्व को नष्ट करने के लिए उसने उचित और अनुचित सभी तरह के कार्य किये।  वह केवल अपने राष्ट्र की उन्नति के बारे में सोचता था, अंतर्राष्ट्रीयता के बारे में ना तो उसकी नीति थी और ना ही कोई महत्व था।  हिटलर की नीति पूरी तरह से अवसरवादी थी, वह केवल अपनी पार्टी की ही उन्नति चाहता था जिसकी वजह से आलोचकों की नजर में संकुचित नीति थी।  आलोचकों के मुताबिक हिटलर की नीति, दमन की नीति पर आधारित थी।

  • अपने सिद्धांतों के प्रचार के लिए उसने एक सशक्त प्रचार तंत्र की स्थापना की

  • प्रचार तंत्र के जरिये उसने नाजीदल का व्यापक प्रचार करवाया

  • प्रकाशन और भाषण की स्वतंत्रता पूरी तरह से खत्म कर दी गई

  • जर्मनी का हर शिक्षण संस्थानों का इस्तेमाल प्रचार कार्य में लगा दिये गए

  • राज्य छोड़कर चले गए विरोधियों की संपत्ति पर कब्जा

  • राज्य छोड़कर चले गए विरोधियों की नागरिकता से वंचित कर दिया गया

  • विरोधियों का क्रूरता से दमन

  • अपनी आज्ञा का पालन कराने के लिए सशस्त्र पुलिस विभाग का संगठन

  • पुलिस विभाग की गोयरिंग को अध्यक्षता जो कि काफी क्रूर था

  • विद्रोही जनता का क्रूरता से दमन

  • विरोधियों पर कड़ी नजर रखने के लिए गुप्तचर विभाग का गठन

हिटलर ने जर्मनी का इस तरह किया आर्थिक पुनर्संगठन

साल 1930 में जर्मनी घोर आर्थिक संकट से गुजर रहा था, जिसे 1934 में उसने जर्मनी की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कई कदम उठाये।  1934 में उसने नियोजकों के संघों को भी पूरी तरह से खत्म कर दिया।  इसकी जगह उसने जर्मन लेबर फ्रंट की स्थापना की जिसमें पूंजीपति और श्रमिक वर्गों के प्रतिनिधियों को शामिल किया।  यह संगठन जर्मनी के वाणिज्य, उद्योग और व्यवसायों का प्रतिनिधित्व करता था।  अगर पूंजीपति और श्रमिकों के बीच कोई विवाद होता था तो ये फ्रंट दोनों के बीच के झगड़े का निपटारा करता था।

इसी के तहत एक नए अधिनियम के अनुसार मई 1934 सामूहिक समझौता, हड़ताल और तालाबंदी पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई।   एक नए कानून के मुताबिक आर्थिक क्षेत्र में नेतृत्व की भावना स्थापित की गई।  लेकिन उद्योगों में काम कर रहे नेता पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं होते थे, उसे भी नाजी सदस्यों से राय लेकर ही फैसला करना होता था।

हिटलर की अन्य दमनकारी नीतियां

इसी तरह एडोल्फ हिटलर ने कृषि में भी कुछ आर्थिक सुधार किये।  इसके लिए हिरेडिटरी फॉर्मस लॉ लाया गया जिसका काम भूमि के विभाजन को रोकना था।  इस नियम के मुताबिक खेत या जमीन को ना तो बेचा जा सकता था, ना गिरवी रखा जा सकता था और ना ही कुर्क किया जा सकता था। बेकारी की समस्या दूर करने के लिए मजदूर स्वयं सेवक सेना बनाई गई।

धर्म के क्षेत्र में भी हिटलर ने अपनी दमनकारी नीति चलाई।  उसने कैथोलिक और प्रोटेस्टेन्ट दोनों धार्मिक संस्थाओं पर अपना नियंत्रण स्थापित करने का भरपूर प्रयास किया।  वो चाहता था कि जर्मनी में कई प्रोटेस्टेन्ट ना होकर एक राष्ट्रीय प्रोटेस्टेन्ट हो और वह राज्य के नियंत्रण में हो।  इतना ही नहीं उसने प्रोटेस्टेन्ट धर्म के मूल सिद्धांतों में भी परिवर्तन लाने की कोशिश की।  उधर नाजी सरकार और कैथोलिक चर्च के बीच भी काफी संघर्ष हुआ।

जियोपॉलिटिक्स के जरिये जीव विज्ञान की पढ़ाई में जाति वंश के बारे में नई बातें पढ़ाई जाने लगी।  स्टूडेंट्स में पढाई के जरिये ये भावना डाली जाने लगी कि जर्मन जाति ही अन्य जातियों से श्रेष्ठ है।   जर्मनी के इतिहास में भी परिवर्तन किया जाने लगा, उस वक्त के इतिहास के किताबों से 1918 की लड़ाई में जर्मन की पराजय का वर्णन ही हटा दिया गया।  उसकी जगह ये लिखा गया कि “पवित्र जर्मन जाति को कभी पराजित नहीं की जा सकती।”

विदेश नीति में भी हिटलर ने अलग रूख अपनाया।  वर्साय की संधि का बदला लेने के लिए उसने चेकोस्लोवाकिया का अंत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया।  पोलैण्ड पर आक्रमण, रूस से सैनिक संधि, मेमल पर अधिकार, ऑस्ट्रिया का अपहरण और म्यूनिख समझौता आदि एडोल्फ हिटलर के विदेश नीतियों की कहानी बयां करती है।

द्वितीय विश्वयुद्ध में हिटलर की भूमिका

द्वितीय विश्वयुद्ध के वैसे तो कई कारण थे लेकिन वर्साय की संधि भी उनमें से मुख्य स्थान रखती है।  कई इतिहासकारों के मुताबिक द्वितीय विश्वयुद्ध की वजह हिटलर को ही माना गया है।  चूंकि वर्साय की संधि में जर्मनी की काफी फजीहत का सामना करना पड़ा था जिसका बदला हिटलर मित्र राष्ट्रों से लेना चाहता था।  इसी संधि की वजह से नाजीवाद का उदय हुआ था।

द्वितीय विश्वयुद्ध 1939 से 1945 तक चला, जिसमें ब्रिटेन पर जर्मनी का हमला 1940 तक जारी रहा।  उधर यूरोप पर नाजियों के नियंत्रण के बाद ये युद्ध वैश्विक हो चला।  हालांकि हिटलर को ब्रिटेन से हार का सामना करना पड़ा था।  लेकिन उसने 1941 में रूस पर हमला कर दिया।  द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका ने 1942 में पदार्पण किया।  इसी साल ब्रिटिश सेना ने स्टालिन पर जवाबी कार्रवाई की।  अगले साल यानि 1943 में जर्मनी ने रूस के आगे हथियार डाल दिये।  उधर उत्तरी अफ्रीका में भी जर्मनी ने सरेंडर कर दिया।

21 अप्रैल 1945 में रूसी सेना बर्लिन जो जर्मनी की राजधानी थी तक पहुंच चुकी थी।  अपनी हार को सामने देखकर हिटलर ने 30 अप्रैल को खुद को गोली मार ली।  हिटलर की आत्महत्या बाद जर्मनी ने 7 मई को बिना किसी शर्त के रूस के आगे सरेंडर कर दिया।  एडोल्फ हिटलर की जीवनलीला समाप्त होने के साथ ही यूरोप में युद्ध की समाप्ति हो गई और 8 मई को यूरोप में विजय दिवस मनाया गया।

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