12 राज्यों में सबसे ज्यादा बोली जाती है हिंदी भाषा
हिंदी दुनिया की एक ऐसी भाषा है जिसे लोग आसानी से पढ़ और समझ सकते हैं। इन दिनों देश भर में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। ऐसे में हिंदी और देश को आजादी मिलने में हिंदी भाषा के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता। हिंदी भाषा अपने आप में शब्दों का समंदर है। इसलिए हिंदी को देश की राजकीय भाषा माना जाता है। हर साल 14 सितंबर को देश में हिंदी दिवस (Hindi Diwas 2021) के रूप में मनाया जाता है। देश में कम लोग ही जानते हैं कि 14 सितंबर को हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है। आखिर क्या है हिंदी दिवस का महत्व? क्यों मनाते हैं हर साल हिंदी दिवस? आइए जानते हैं हिंदी दिवस के बारे में विस्तार से।
क्यों मनाते हैं Hindi Diwas 2021 ?
देश में हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं। दरअसल, देश जब आजाद हुआ था तो भाषा को लेकर बड़ा सवाल यही था कि देश की राजकीय भाषा क्या होगी। क्योंकि हमारे देश में विविधता में एकता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में कई भाषाएं बोली जाती हैं। आजादी के बाद संविधान सभा ने देवनागरी लिपी में लिखी हिन्दी को अंग्रजों के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया था कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू(Jawaharlal Nehru) ने इस दिन के महत्व देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाए जाने का ऐलान किया था। तभी से 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
‘पीएम अतंरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी भाषा बोलते हैं’
हिंदी दिवस के मौके पर गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने कहा कि हिंदी सभी भाषाओं की सखी है। भारत ने सभी भाषाओं को संभालकर रखा है। शाह ने कहा कि ‘आत्मनिर्भर अभियान भारत की भाषाओं को जानने के लिए है। जब हम आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे, स्वराज, स्वदेशी और स्वभाषा हमारा मूलमंत्र था। प्रधानमंत्री दुनिया के ऊंचे से ऊंचे मंच पर अपने देश की भाषा बोलते हैं। सभी भाषाओं को साथ लेकर राजभाषा को बढ़ाना है।
देश के 12 राज्यों में हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाती है। जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश सबसे ऊपर हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़ों को देखा जाए तो इनमें 1971 से 2011 के बीच हिंदी बोलने वालों की संख्या में 6 फीसदी का इजाफा हुआ, जबकि बाकी सभी भाषाओं को जानने वालों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई। यानि हर दशक में हिंदी जानने वालों की संख्या औसतन 1.5 फीसदी की दर से बढ़ी है।