पलायन शब्द अपनों से दूर करने का द्योतक है। पलायन (Getaway) एक दंश भी है, जब यह डंसती है तो सिर्फ इंसान ही नहीं उससे जुड़े कई लोग तड़प उठते हैं। लेकिन क्या करें जब पलायन मजबूरी बन जाए। दो जून की रोटी के लिए अपने घर-द्वार को छोड़कर दूसरे गांव-शहर में जाने की मजबूरी का नाम भी पलायन है। उत्तर प्रदेश के परिपेक्ष्य में पलायन शब्द पर कई चर्चाएं हो चुकी हैं। यूपी के बलरामपुर जिले के एक गांव को लेकर एक बार फिर इस शब्द को लेकर चर्चा हो रही है।
बलरामपुर जिले के मटहा गांव के लोग Getaway को मजबूर
उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए, सरकार की जमकर तारीफ की। हाल ही में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा आये, योगी सरकार के तारीफों के पुल बांधे। लेकिन बलरामपुर के मटहा गांव के लोगों को यह तारीफ को अपने गाल पर तमाचे के समान लग रहा होगा। वजह यह है कि योगी सरकार के तारीफों के पुल तो बांधे गए। लेकिन उनके गांव के पास बहने वाली राप्ती नदी के उफान को रोकने के लिए कोई पुल ही नहीं है। यहां विकास तो हुआ है लेकिन केवल राप्ती नदी के पानी का। राप्ती नदी के पानी ने इस गांव के 500 बीघे जमीन को अपने अंदर समा लिया है। हालात ऐसे हैं कि अब लोग यहां के Getaway करने को मजबूर हैं।
गांव में हर ओर पानी ही पानी
यहां बहने वाली राप्ती नदी का कहर इतना बढ़ गया है कि गांव का कोई भी आदमी अगर बीमार पड़ता है। तब उसके सामने घुट-घुटकर मरने के अलावा कोई चारा नहीं रहता है। इस गांव में इस तरह के हालात नए नहीं हैं। पिछले साल भी कई लोग इसी वजह से अपनी जान गंवा बैठे हैं। ऐसे में कुछ लोगों ने पिछले साल पलायन का रास्ता अपनाया कुछ इस साल पलायन की तैयारी में हैं।
मूलभूत सुविधाओं का अभाव
बलरामपुर का मटहा गांव पलायन ही नहीं योगी सरकार की विकास की तस्वीर भी बखूबी पेश कर रहा है। इस गांव में न तो पहले की सरकार ने लोगों को शिक्षित करने की सोची। ना ही इस सरकार ने इस ओर कोई ध्यान दिया है। आलम यह है कि यहां के लोग पहले भी अशिक्षित थे और अब भी अशिक्षित ही हैं। जहां तक बिजली का प्रश्न है, यहां अभी तक विधुतीकरण भी नहीं हुआ है।
गांव लड़के रह जाते हैं कुंवारे
सुविधाओं कमी से जूझते इस गांव के युवा एक परेशानी से भी जूझ रहे हैं। यहां की खराब हालत की वजह से कोई भी अपनी लड़की की शादी इस गांव में नहीं करता है। जिसकी वजह से यहां के कई युवा उम्र बढ़ जाने के बाद भी कुंवारे रह जाते हैं। बलरामपुर के मटहा गांव के 40 प्रतिशत लोगों की शादी तक नहीं हुई है।
15 किलोमीटर दूर है सरकारी योजनाएं
मटहा गांव में मंदिर और स्वास्थ्य केंद्र नदारद तो है ही। पेट भरने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मिलने वाले खाद्यान को उठाने के लिए भी 15 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है।